PTB News “हेल्थ” : वर्तमान समय में तकनीकी ने इतनी प्रगति कर ली है कि अब जो काम प्राकृतिक तरीके से नही हो पाता है उसको तकनीकी की मदद से पूरा कर लिया जाता है / ऐसे में अब उन निःसंतान दंपतियों के लिए एक आशा की किरण ST Hospital & Infertility Center Hospital Jalandhar के Dr Asheesh Kapoor द्वारा जगाई गई है, क्योंकि वह अब अपने इस अस्पताल में IVF Technology का शुभारंभ आज से करने जा रहे हैं /
आपको यह भी बता दें कि Dr Asheesh Kapoor बीते कई सालों से ST Hospital & Infertility Center Hospital Jalandhar में यूनानी दवाइयों की मदद से निःसंतान दंपतियों का इलाज कर रहे थे, लेकिन समय और Technology के इस युग में यूनानी दवाओं से हर निःसंतान दंपति को वह संतुष्ट नहीं कर सकते और उन निःसंतान दंपतियों को इधर उधर भटकन पड़ता था और लाखों रूपये उजाड़ने के बाद भी उनको ख़ुशी नहीं मिल पाती थी, ऐसे में जब Dr Asheesh Kapoor को इस बात का पता चल तो उन्होंने IVF Technology को अपने ही अस्पताल में शुरू करने का प्रण ले लिया और आज यानि 25 नवंबर 2021 को ST Hospital & Infertility Center Hospital Jalandhar का शुभारंभ विधि पूर्वक पूजा अर्चना के साथ होने जा रहा है /
इस दौरान ST Hospital & Infertility Center Hospital Jalandhar के Dr Asheesh Kapoor आशीष कपूर ने PTB News के Editor-in-Chief राणा हिमाचल के साथ विशेष बातचीत के दौरान बताया कि किस तरह से टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया के माध्यम से महिला के अंडाशय से अण्डों को अलग कर शरीर के बाहर लैब में पुरुष के शुक्राणुओं के साथ निशेषित किया जाता है और इसके बाद तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है /
इस दौरान Dr Asheesh Kapoor ने बताया कि किस प्रकार टेस्ट ट्यूब प्रक्रिया के माध्यम से महिला के अंडाशय से अण्डों को अलग कर शरीर के बाहर लैब में पुरुष के शुक्राणुओं के साथ निशेषित किया जाता है और इसके बाद तैयार भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है / इस IVF Technology के माध्यम से निषेचन की प्रक्रिया उन महिलाओं पर अजमाई जाती है जिनके पतियों में शुक्राणुओं की मात्रा काफी कम होती है /
उन्होंने आगे बताया कि प्राकृतिक रूप से औरत के अंडाशय में एक महीने के दौरान एक ही अंडा बनता है, लेकिन IVF तकनीकी की सहायता से महिला को ऐसी दवाइयां दी जाती हैं कि उसके अंडाशय में एक से अधिक अंडे बनने लगते हैं, ज्यादा अंडे इसलिए बनाये जाते हैं ताकि ज्यादा संख्या में स्वास्थ्य भ्रूण बनाये जा सकें /
इसके बाद महिला के अंडाशय से अण्डों को बाहर निकालने के लिए महिला को 15 मिनट के लिए बेहोश किया जाता है / इसके बाद अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की मदद से योनि से होकर एक पतली सिरिंज (सुई) डाली जाती है और उसमे स्वास्थ्य अण्डों को बाहर निकाला जाता है / इसके बाद लेब में पुरुष के वीर्य से पुष्ट शुक्राणु अलग किये जाते हैं और इनका निषेचन महिला के अण्डों के साथ कराया जाता है / इसके लिए एक अंडे को पकड़कर उसके अन्दर एक शुक्राणु को इंजेक्ट किया जाता है / फर्टिलाइजेशन प्रक्रिया पूरी होने के बाद विकसित भ्रूण को इन्क्युबेटर में रख दिया जाता है /
इसके बाद इन्क्युबेटर में रखे भ्रूण का विकास भ्रूण वैज्ञानिको की देखरेख में होता है / 2 से 3 दिन बाद यह निषेचित अंडा 6 से 8 सेल के भ्रूण में परिवर्तित हो जाता है / इन विकसित भ्रूणों में से अच्छी क्वालिटी वाले 2 या 3 भ्रूणों का चयन प्रत्यारोपण के लिए किया जाता है /
इसके बाद भ्रूण वैज्ञानिक विकसित भ्रूण या ब्लास्टोसिस्ट में से 1 या अधिक स्वास्थ्य भ्रूणों का चयन कर भ्रूण ट्रान्सफर केथेटर में ले लेते हैं / डॉक्टर इस केथेटर को महिला के गर्भाशय में एक पतली नली के जरिये उन भ्रूणों को सावधानी से अल्ट्रासाउंड इमेजिंग की निगरानी में औरत के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर देते हैं / यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि इस प्रक्रिया में कोई दर्द नही होता है और न ही किसी तरह का ऑपरेशन किया जाता है / अब प्रत्यरोपण के बाद भ्रूण का विकास ठीक वैसे ही होता है जैसे कि प्राकृतिक गर्भधारण में होता है /
इस प्रकार जिस बच्चे के जन्म होता है उसे टेस्ट ट्यूब बेबी भी कहा जाता है.इसे टेस्ट ट्यूब बेबी इस लिए भी कहा जाता है क्योंकि इस तकनीकी में बच्चे के जन्म की प्रक्रिया/निषेचन परखनली (Test Tube) में शुरू होती हैं / इस तकनीकी के लिए लागत कई चीजों जैसे स्पर्म डोनर का खर्च, अस्पताल का खर्च, अन्य मेडिकल खर्च आदि को मिलाकर बनता है. विभिन्न शहरों में इसकी लागत अलग-अलग होती है / लेकिन इस दौरान Dr Asheesh Kapoor ने PTB News को बताया कि ST Hospital & Infertility Center Hospital Jalandhar में IVF Technology के इलाज के लिए निःसंतान दंपतियों के घर में किलकारियां गूंजे इसी दिशा में एक कदम बढ़ाते हुए कम ख़र्च के साथ इलाज किया जायेगा /