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हिंदी फिल्मों की सबसे 'खतरनाक सास' थी यह एक्ट्रेस,

(पढ़ें और देखें पीटीबी न्यूज़ पर)

PTB न्यूज़ “B’Day स्पेशल” : 18 अप्रैल को पूरे 102 बरस हो गए हैं, जब हिंदुस्तानी समाज में प्रचलित सास-बहू की कथाओं की ‘क्रूर सास’ को फिल्मी पर्दे पर छवि देने वाली अभिनेत्री ललिता पवार का जन्म हुआ था / हिंदी फिल्मों की सबसे खतरनाक सास के तौर पर मशहूर हुई एक्ट्रेस ललि‍ता पावर ने अपने करियर में कई बेहतरीन फ़िल्में कीं /

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फिल्मों में अक्सर घर में नई-नई आई, सुकुमारी बहू पर जुल्म ढाती ‘सास’ के किरदार निभाती ललिता पवार एक दौर की प्रसिद्ध नायिका थीं / एक ऐसी नायिका जो ‘मस्तीखोर माशूका’ (1932) जैसी काफी ‘हॉट’ किस्म की फिल्मों में दिखाई दी थी / फिल्मी पर्दे पर उन्हें सबसे क्रूर सास का टैग मिला, हालांकि कुछ सॉफ्ट रोल भी उनके खाते में रहे लेकिन पहचान नेगटिव किरदारों से ज्यादा मिली /

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ललिता 18 अप्रैल 1916 को इंदौर में जन्मी थीं / पैदाइश के वक्त नाम रखा गया अंबा / उस दौर में लड़कियों को स्कूल भेजना जरा ठीक नहीं समझा जाता था, लिहाजा अंबा के नसीब में कभी स्कूल जाना न हुआ / थोड़ा-बहुत जो पढ़ा तो वह भी घर पर /

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अंबा अभी 11 बरस की ही थी कि उसे पिता और छोटे भाई शांताराम के साथ पुणे जाने का मौका मिला / यहां आर्यन फिल्म कंपनी के स्टूडियो में एक फिल्म की शूटिंग देखने पहुंची अंबा पर नजर पड़ी निदेशक नाना साहेब सरपोतदार की / उन्होंने अंबा को फिल्मों में बाल भूमिकाएं करने का ऑफर दिया / काफी ना-नुकुर के बाद पिता लक्ष्मणराव मान गए /

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नतीजतन, कंपनी ने अंबा को फिल्मी नाम ललिता सगुन देकर, 18 रुपए की मासिक पगार पर नौकरी दे दी / बतौर बाल कलाकार ललिता सगुन की पहली फिल्म एक मूक फिल्म थी / 1927 में रिलीज हुई इस फिल्म का नाम था ‘पतित उद्धार’ /

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ललिता ने इस कंपनी के लिए तकरीबन 20 फिल्मों में काम करने के बाद नौकरी छोड़ बाहर की फिल्मों में भी काम करना शुरू कर दिया / 1931 में ‘आलम आरा’ के रिलीज के साथ फिल्मों को आवाज मिल गई थी / बोलती फिल्मों के उस शुरूआती दौर में कलाकारों को अपने गीत खुद गाने की बाध्यता थी /

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ललिता पवार खासी अच्छी गायिका थीं, सो इसका उन्हें लाभ मिला / 1935 की फिल्म ‘हिम्मते मर्दां’ में उनका गाया ‘नील आभा में प्यारा गुलाब रहे, मेरे दिल में प्यारा गुलाब रहे’ उस वक्त काफी लोकप्रिय हुआ था /

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पुणे से मुंबई आने के बाद ललिता जी ने ‘मस्तीखोर माशूक’ (1932), ‘भवानी तलवार’(1932), ‘कैलाश’(1932), ‘प्यारी कटार’(1933), ‘जलता जिगर’(1933), ‘नेक दोस्त’(1934) और कातिल कटार’(1935) जैसी फिल्मों में प्रमुख भूमिकाएं निभाकर काफी शोहरत हासिल की /

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ललिता पवार एक आंख के जाने के बाद ही वैम्प के रोल में आई थीं / इससे पहले वह बॉलीवुड में हीरोइन बनना चाहती थीं / लेकिन उनकी आंख कैसे चली गई ये घटना भी फिल्मों से जुड़ी है / बात 1942 की है / फिल्म ‘जंग-ए-आजादी’ के एक सीन की शूटिंग के दौरान एक दुर्घटना की वजह से उनकी एक आंख में चोट लग गई / जिससे उनका हीरोइन बनने का सपना हमेशा के लिए टूट गया /

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लेकिन आंख खराब होने के बावजूद भी ललिता ने हार नहीं मानी। उन्हें फिल्मों में हिरोइन का रोल नहीं मिलता था लेकिन यहां से उनकी जिंदगी में एक नई शुरुआत हुई, हिंदी सिनेमा की सबसे क्रूर सास की और 1948 में अपनी एक मूंदी आंख के साथ निदेशक एस.एम. यूसुफ़ की फिल्म ‘गृहस्थी’ से एक बार फिर उन्होंने वापसी की /

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ललिता पवार ने अपने जीवंत अभिनय से दर्शकों के बीच एक अलग पहचान बनाई / अपने 60 साल से ज़्यादा लंबे करियर में हिंदी, मराठी और गुजराती में ललिता ने 700 से ज़्यादा फिल्मों में काम किया / ललिता पवार की यादगार भूमिकाओं में अनाड़ी की मिसेज़ डीसा का रोल है जिसके लिए उन्हें फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला था / इसके अलावा श्री 420 की गंगा माई, मिस्टर एंड मिसेज़ 55 में सीता देवी, प्रोफेसर में सीता देवी वर्मा और रामायण में मंथरा के रोल के लिए ललिता पवार को भुलाया नहीं जा सकता /

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24 फरवरी 1998 को 700 फिल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखाने वाली इस अभिनेत्री ने पुणे में अपने छोटे से बंगले ‘आरोही’ में अकेले ही पड़े-पड़े आंखें मूंद लीं / उस समय उनके पति राजप्रकाश अस्पताल में भर्ती थे और बेटा अपने परिवार के साथ मुंबई में था / उनकी मौत की खबर तीन दिन बाद मिली जब बेटे ने फोन किया और किसी ने उठाया नहीं / घर का दरवाजा तोड़ने पर पुलिस को ललिता पवार की तीन दिन पुरानी लाश मिली /




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