गुजरात में पूर्व विधायकों को मिलती ही नहीं पेंशन, देश के संविधान में भी देने का उल्लेख नहीं – हेमंत
PTB Big न्यूज़ चंडीगढ़ : देश के जिन भी राज्यों में आज भाजपा शासित सरकारें हैं / वह सभी अपने अपने प्रदेश में शासन और प्रशासन की व्यवस्था में गुजरात मॉडल का अनुसरण करने का दावा करती हैं / उक्त मॉडल से अभिप्राय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब अक्टूबर, 2001 से मई, 2014 तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे, उनके कार्यकाल दौरान लिए गए साहसिक नीतिगत निर्णय और लागू की गई अभिनव योजनाएं इत्यादि. हालांकि गुजरात मॉडल का एक पहलु ऐसा भी है जिसे लागू करना अन्य राज्यों की भाजपा या किसी पार्टी की सरकार के लिए कतई सहज नहीं है /
इस सम्बन्ध में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एडवोकेट हेमंत कुमार ने एक रोचक परन्तु महत्वपूर्ण जानकारी सांझा करते हुए बताया कि देश में गुजरात ऐसा इकलौता राज्य हैं जहाँ प्रदेश विधानसभा के पूर्व सदस्यों (विधायकों) को पेंशन ही नहीं मिलती है, हालांकि वर्ष 1984 में तत्कालीन माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार द्वारा पूर्व विधायकों को पेंशन देने सम्बन्धी विधानसभा से कानून बनवाया गया था, हालांकि उसकी अनुपालना नहीं हो सकी, सितम्बर, 2001 में तत्कालीन केशुभाई पटेल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने विधानसभा द्वारा उपरोक्त 1984 कानून को ही रद्द/समाप्त करवा दिया था /
उसके कुछ दिनों बाद 7 अक्टूबर, 2001 को नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री बने परन्तु उन्होंने भी साढ़े बारह वर्षो के शासनकाल में पूर्व विधायकों को पेंशन देने सम्बन्धी कोई नया कानून नहीं बनवाया / मोदी के बाद पहले आनंदीबेन पटेल, फिर विजय रुपानी और मौजूदा मुख्यमंत्री भूपेन्द्रभाई पटेल के कार्यकाल में भी ऐसा नहीं किया गया है /
हाल ही में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा पंजाब के कुछ पूर्व विधायकों द्वारा दायर उस याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी किया गया जिसमें प्रदेश की भगवंत मान के नेतृत्व वाली आप पार्टी की सरकार द्वारा पंजाब विधानसभा मार्फ़त किये गए उस कानूनी संशोधन को चुनौती दी गई है जिसके अनुसार पंजाब के हर पूर्व विधायक को केवल एक ही कार्यकाल की पेंशन मिलेगी, बेशक वह कितनी ही बार सदन का सदस्य (विधायक) निर्वाचित हुआ हो /
पूर्व विधायकों का तर्क है कि उपरोक्त संशोधन कानून उसके सरकारी गजट में अधिसूचित होने की तारीख अर्थात 11 अगस्त 2022 से ही लागू होता है एवं उसे पिछली तिथि से लागू नहीं किया जा सकता / इस प्रकार वह पूर्व विधायक जो दो से पांच कार्यकालों की पेंशन ले रहे हैं, उनकी पेंशनराशि में कटौती नहीं की जा सकती है / बहरहाल, हेमंत ने पंजाब सरकार से पूर्व विधायकों की पेंशन सम्बन्धी कानून में पुन: उपयुक्त संशोधन करवाने की अपील की है, जिससे उसमें स्पष्ट उल्लेख किया जाए कि प्रदेश के पूर्व विधायकों को एक कार्यकाल की पेंशन प्रदान करने का सिद्धांत इस बारे में किये गए कानूनी संशोधन से पहले के पूर्व विधायकों पर भी लागू होगा,
ताकि उसके दायरे में प्रदेश के सभी पूर्व विधायक आ सकें / भारत के संविधान के अनुच्छेद 195 का हवाला देते हुए हेमंत ने बताया कि उसमें केवल विधायकों के लिए वेतन और भत्तों का प्रावधान किया गया है एवं उसमें या संविधान के किसी भी अन्य अनुच्छेद में पूर्व विधायकों को पेंशन देने का कोई उल्लेख ही नहीं है / इसी प्रकार संविधान के अनुच्छेद 106 में भी संसद सदस्यों (सांसदों) हेतु भी वेतन और भत्तों का प्रावधान है, पेंशन का नहीं,
साढ़े चार वर्ष पूर्व अप्रैल, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व सांसदों को मिलने वाली पेंशन राशि को चुनौती देने सम्बन्धी एक याचिका को ख़ारिज कर दिया था / कोर्ट के अनुसार पूर्व सांसदों को पेंशन देने या न देने सम्बन्धी कोई भी निर्णय में देश की संसद के अधिकार-क्षेत्र में आता है / इसी आधार पर ही प्रदेश के पूर्व विधायकों को पेंशन देने या न देने के सम्बन्ध में सम्बंधित राज्य की विधानसभा या विधानमंडल द्वारा ही फैसला लिया जा सकता है /
भारत के संविधान के अनुच्छेद 106 एवं अनुच्छेद 195 में स्पष्ट उल्लेख है कि क्रमशः संसद सदस्यों एवं राज्य विधानमंडल के सदस्यों के वेतन एवं भत्ते वही होंगे जो कि संसद एवं विधानमंडल द्वारा समय समय पर उपयुक्त कानून बनाकर निर्धारित किये जायेंगे और जब तक इस बाबत प्रावधान नहीं बनाया जाता तो जो भत्ते संविधान सभा के सदस्यों एवं प्रांतीय अस्सेम्ब्लीज़ के सदस्यों को संविधान के लागू होने से पहले उन्हें प्राप्त होते थे, उसी दर पर वह सांसदों और विधायको को मिलेंगे /
इसी बीच प्रश्न उठता है जब न तो देश का संविधान लागू होने से पहले और न उसके बाद उसमें पूर्व सांसदों एवं पूर्व विधायको को प्रदान की जाने वाली पेंशन के बारे में कोई उल्लेख या प्रावधान किया गया, फिर इन सबको आज की तारीख में पेंशन कैसे मिल रही है / संसद द्वारा वर्ष 1954 में संसद सदस्य (वेतन और भत्ते) कानून बनाया गया एवं उसमें पेंशन देने सम्बन्धी कोई प्रावधान नहीं था, हालाकि वर्ष 1976 में उसमें संशोधन कर संसद सदस्य (वेतन, भत्ते और पेंशन) कानून कर दिया गया /
अत: पूर्व सांसदों को पेंशन देने बाबत प्रावधान संविधान लागू होने के 26 वर्ष पश्चात डाला गया / इसी प्रकार पंजाब, हरियाणा और अन्य प्रदेशों की विधानसभाओं द्वारा भी उनके राज्य में पूर्व विधायको को पेंशन देने सम्बन्धी प्रावधान संसद के उपरोक्त संशोधन कानून के बाद ही बनाये गए थे / इसलिए राज्य विधानसभा सम्बंधित कानून में संशोधन कर न केवल पूर्व विधायकों की पेंशनराशि में कटौती कर सकती है बल्कि पूर्णतया पेंशन देना भी बंद कर सकती है /