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श्री सिद्ध बाबा सोढल मेला आज से शुरू, लाखों धर्मप्रेमियों की आस्था हैं शेषनाग के अवतार श्री सिद्ध बाबा सोढल जी,

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पीटीबी न्यूज़ “धार्मिक” जालंधर : पूर्ण भारतवर्ष के दोआबा क्षेत्र को जहां इसकी समृद्धि के लिए विशेष स्थान प्राप्त है वहीं ईश्वरीय सत्ता ने भी इस क्षेत्र पर अपनी असीम कृपा रखी है। इसीलिए दोआबा में अनेक धार्मिक स्थल श्रद्धालुओं की आस्था के केन्द्र हैं। श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर भी ऐसा ही धार्मिक स्थल है जो दोआबा के प्रसिद्ध शहर जालंधर में स्थित है। लाखों धर्मप्रेमियों की आस्था इस स्थल से जुड़ी हुई है। इसी आस्था एवं श्रद्धा की डोर से बंधे वे इस स्थल की ओर खिंचे चले आते हैं। वैसे तो वर्ष भर इस धर्म स्थल पर श्रद्धालुओं का आवागमन रहता है परन्तु अनंत चौदस के पूजन पर तो इस धर्मस्थल पर तिल रखने की भी जगह नहीं होती।

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इस ऐतिहासिक एवं प्राचीन धर्मस्थल का इतिहास गौरवशाली है। धार्मिक मान्यतानुसार आज से लगभग पांच सौ वर्ष पहले इस स्थल पर आदर्श मुनि कठोर तपस्या में लीन रहते थे। प्रभु भक्ति में लीन रहने वाले मुनिश्वर की सेवा में भक्तजन उपस्थित होकर उनकी कृपा का प्रसाद प्राप्त करते। मुनिवर की ख्याति धीरे-धीरे दूर-दराज तक फैलती गई। उनके श्रद्धालुओं की संख्या में भी वृद्धि होती गई। जालंधर नगर की लड़की जोकि आनंद परिवार से संबंधित थी, उसकी शादी चड्ढा परिवार में हुई।?शादी के कई वर्ष उपरांत भी जब उसे संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई तो वह मुनिवर की सेवा में आने लगी।?

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लड़की की सेवा से प्रसन्न होकर तपस्वी ऋषि ने उसे वर मांगने को कहा तो लड़की ने संतान प्राप्ति की इच्छा की। तपस्वी ऋषि ने भक्ति की शक्ति से अन्तध्र्यान होकर देखा तो उन्होंने लड़की से कहा, ‘बेटी, तेरे भाग्य में संतान सुख नहीं है।’ लड़की इससे निराश तो हुई परन्तु सेवा कार्य में जुटी रही।?लड़की के संतान सुख के लिए आदर्श मुनि भगवान विष्णु की तपस्या में जुट गए। भगवान विष्णु ने तपस्या से प्रसन्न होकर शेषनाग को मुनि के पास इच्छा पूछ कर उसे पूर्ण करने हेतु भेजा।

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भगवान विष्णु जी के आदेशानुसार शेषनाग जी आदर्श मुनि के पास वेश?बदलकर पहुंचे और कठिन तपस्या का कारण पूछा। मुनि ने सारी बात शेषनाग जी को कह सुनाई। शेषनाग जी ने मुनि को उनकी तपस्या का फल एवं वरदान देते हुए कहा कि इस लड़की की संतान रूप में मैं खुद अवतरित हो जाऊंगा। शेषनाग जी ने एक शर्त यह भी कही कि मेरी माता कभी मेरा अपमान नहीं करेगी जिस दिन भी उसने मेरा निरादर किया तत्काल प्रभाव से मैं वापस चला जाऊंगा। विष्णु जी की इच्छा के अनुसार शेषनाग जी मुनि की तपस्या करने वाली लड़की की कोख से जन्मे।

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पुत्र रत्न प्राप्त होने से सारे परिवार में प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी। बालक का नाम सोढल रखा गया। अन्य बालकों की तरह इस बालक में चंचलता नहीं थी। बालक रूप सोढल कई घंटे प्रभु चरणों में ध्यान लगाकर बैठे रहते। जब सोढल जी पांच वर्ष के थे तो एक दिन सरोवर के किनारे अपनी माता के साथ गए। माता सरोवर के किनारे कपड़े धोने लगी। अचानक बालक सोढल शरारतें करने लगे। बार-बार मना करने पर भी जब वह न माने तो उनकी माता ने क्रोधित होकर कहा कि जा, यदि तेरा डूबने का ही मन है तो सरोवर में डूब जा। ऐसा सुनते ही माता को बालक ने कहा कि यदि ऐसी ही आपकी इच्छा है तो मैं डूबने जा रहा हूं।?

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बालक ने जलसमाधि ले ली। बहुत ढूंढने पर भी जब बालक सोढल न मिले तो उनकी माता विलाप करने लगी। माता की दयनीय स्थिति देख सोढल जी कुछ समय उपरांत प्रकट हो गए। जल के ऊपर आकर उन्होंने दिए वचन को याद दिलाया और दूर जाने की बात कही। यह सुनकर माता विलाप करने लगी और ममता के अधिकार की बात कही। बाबा सोढल ने अपनी माता को ढांढस बंधाते हुए कहा कि आप चिन्ता न करें, चड्ढा वंश एवं आनंद जाति का नाम रहती दुनिया तक रहेगा। उन्होंने कहा कि अब उनका स्वरूप नाग का होगा।

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बाबा सोढल जी के आदेशानुसार उनकी पूजा अनंत चौदस के दिन जरूर होती है। चड्ढा परिवार के सदस्य प्रत्येक व्यक्ति की गणना के अनुसार सवा दो सेर का टोप व लड़की का एक बुक के हिसाब से टोप के अतिरिक्त बाबा जी के नाम का सवा दो सेर का टोप सोढल मन्दिर में अर्पण करते हैं। परंपरा के अनुसार अर्पण करने के पश्चात प्रसाद रूप में ग्रहण करने का अधिकार चड्ढा परिवार को ही है। चड्ढा परिवार की पुत्री तो यह प्रसाद खा सकती है लेकिन इस परिवार के दामाद को यह प्रसाद खाने की आज्ञा नहीं है।

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सोढल बाबा जी की आज्ञा के अनुसार अनंत चौदस से एक सप्ताह पूर्व हर चड्ढा परिवार को सोढल जी का पूजन करना होता है। परम्परा के अनुसार दो ठीकरों में गेहूं बोना होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से दरिद्रता दूर होती है। संधारा पूजन के उपरांत परिवार की बहू को बया अपने परिवार के बुजुर्गो को देना होता है। इस दिन परिवार के लिए कड़ाही में बना खाद्य पदार्थ ही सेवन करने की परम्परा है। लगभग पांच सौ वर्षो से बाबा सोढल जी की पूजा परम्परा श्रद्धा भाव से चल रही है। पारंपरिक मेले में चड्ढा वंश के लोगों के अतिरिक्त भी लाखों लोग शीश निवा कर बाबा जी का आशीर्वाद लेते हैं।

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