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हाईकोर्ट के नए फैसले के बाद क्या कार में लगा सकेंगे गाड़ी मालिक ब्लैक फिल्म?

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PTB Big न्यूज़ केरला : अपने अक्सर देखा होगा कार की खिड़कियों से ब्लैक फिल्म उतारते और भारी-भरकम चालान करती पुलिस को, इस कार्रवाई के डर से दुकानें भी ऐसी फिल्में लगाने से आनाकानी करती हैं, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। 12 सितंबर, 2024 को केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गाड़ियों की खिड़की पर तय नियमों के मुताबिक प्लास्टिक फिल्म या कूलिंग फिल्म लगाने से रोकना सही नहीं है। अगर पुलिस विंडो ग्लास पर कूलिंग फिल्म या प्लास्टिक लगे होने पर चालान कर रही है तो ये गलत है।

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आखिर क्यों? केरल हाईकोर्ट ने किन मामलों में ये फैसला सुनाया है? दरसअल केरल हाईकोर्ट में मुख्य रूप से दो याचिकाएं दायर हुई थीं, जिसमें केरल की एक प्राइवेट कंपनी अलप्पुझा और एक दुकानदार ने याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि उसके पास मोटर व्हीकल डिपार्टमेंट से एक नोटिस आया है, जिसमें उसकी कंपनी का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की बात कही गई है। इसकी वजह ये है कि उनकी कंपनी गाड़ी की खिड़कियों पर लगाई जाने वाली प्लास्टिक फिल्म बनाती है।

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वहीं दूसरी याचिका एक कार चालक ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी गाड़ी में तय नियमों के मुताबिक फिल्म लगे होने के बावजूद पुलिस ने उसका चालान किया है। केरल हाईकोर्ट के जस्टिस एन नागरेश की बेंच के सामने इस मामले से जुड़े तीन मुख्य सवाल थे… चालक खुद अपनी गाड़ी की खिड़कियों में फिल्म लगा सकते हैं या नहीं? वहीं कार की खिड़कियों पर तय नियम के मुताबिक फिल्म लगी है तब भी क्या मोटर चालकों को जुर्माना भरना होगा?

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क्या कोई कंपनी गाड़ियों पर लगाई जाने वाली फिल्म बनाकर बेच सकती है या नहीं? केरल हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी कि ब्लैक फिल्म लगाने की अनुमति दी जाए। केरल हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई थी कि ब्लैक फिल्म लगाने की अनुमति दी जाए। वहीं इस मामले में सुनवाई के बाद केरल हाईकोर्ट ने क्या फैसला सुनाया है? इस मामले में सुनवाई के बाद जस्टिस एन नागरेश की बेंच ने फैसला सुनाते वक्त जो टिप्पणी की है, उसमें इन तीनों सवालों के जवाब हैं… जिनमें अगर गाड़ियों के विंडो ग्लास पर सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट, 1989 के रूल्स 100 के मुताबिक प्लास्टिक की फिल्म, विंड स्क्रीन या सुरक्षा ग्लास लगा है तो उस गाड़ी के मालिक या चालक से जुर्माना वसूलना कानूनी तौर पर सही नहीं है।

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हाईकोर्ट ने अपने फैसले में ये भी कहा कि सिर्फ कंपनियां ही नहीं, बल्कि कार चालक भी अपने हिसाब से खिड़कियों के ग्लास पर अलग से प्लास्टिक की फिल्में लगा सकते हैं। इस फैसले का असर पूरे देश पर पड़ेगा। वहीं एक सवाल यह भी था की क्या अभी गाड़ी की खिड़कियों पर ब्लैक फिल्म लगाने पर पूरी तरह रोक है? इस बात का जवाब था, नहीं, फिलहाल कार की खिड़कियों और आगे-पीछे के शीशे पर पूरी तरह से फिल्म लगाने पर रोक नहीं है। आप अपनी कार में सेंट्रल मोटर व्हीकल एक्ट 1989 के रूल्स 100 के मुताबिक फिल्म या प्लास्टिक लगा सकते हैं, लेकिन इसके लिए दो बातों का ध्यान रखना जरूरी है…

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जिसमें केरल हाईकोर्ट में याचिका लगाने वाले ने फिल्म लगाने की इजाजत मांगने के पीछे क्या तर्क देते हुए कहा की गाड़ी की खिड़कियों पर फिल्म लगाने की मांग करते हुए याचिका लगाने वाले लोगों ने तीन मुख्य तर्क दिए…गाड़ी के अंदर के तापमान को कंट्रोल करने के लिए: धूप की वजह से कार के अंदर का टेम्परेचर बढ़ जाता है। अंदर का तापमान बाहर के तापमान से ज्यादा हो जाता है। ऐसे में कार की खिड़की पर कूलिंग फिल्म लगाने से गाड़ी जल्दी गर्म नहीं होती।

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इन फिल्मों में कई परतें होती हैं। इस वजह से धूप की किरणें फिल्म से टकराकर परावर्तित हो जाती हैं। इससे अंदर की गर्मी करीब 34 से 45% तक कम हो जाती है। वहीं सूर्य की रोशनी में दो तरह की अल्ट्रावॉयलेट यानी UV किरणें, UVB और UVA होती हैं। ये कार की बंद खिड़की से भी त्वचा तक पहुंचती हैं। इन हानिकारक UV किरणों से त्वचा संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। खिड़की पर फिल्म के इस्तेमाल से 99% अल्ट्रावॉयलेट, 85% इंफ्रारेड और 55% रिफ्लेक्शन को कम किया जा सकता है।

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वहीं कांच को टूटने से बचाता है: कई कंपनियों का दावा है कि उनकी फिल्म गाड़ियों के कांच को टूटने से बचाती है। कांच टूटने की स्थिति में कांच के टुकड़े गाड़ी के अंदर बैठे लोगों को चोट नहीं पहुंचाते। साथ ही चोरों को कार में घुसने या चोरी करने के लिए ग्लास को तोड़ने से भी रोकता है। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता अविशेष गोयनका की याचिका पर सुनाई करते 4 मई, 2012 से देश में वाहनों में ब्लैक स्क्रीन को बैन कर कर दिया था। उस समय के चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया समेत तीन जजों की बेंच ने फैसले में कहा था-

केंद्रीय मोटर वाहन नियमों के मुताबिक विंडस्क्रीन के लिए न्यूनतम 70% और साइड विंडो के लिए 50% विजिबिलिटी अनिवार्य है। तब कोर्ट ने ये भी कहा था कि ये स्टैंडर्ड्स मैन्युफैक्चरर्स के लिए हैं। जब कोई शोरूम से एक बार वाहन खरीद लेता है तो उसमें बदलाव नहीं कर सकता। गाड़ी की खिड़की में इस्तेमाल होने वाले काली फिल्मों के उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने दो वजहों से रोक लगाई थी, 1. इससे दुर्घटनाएं ज्यादा होती हैं। 2. इससे कार के अंदर अपराध को अंजाम दिया जा सकता है।

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कोर्ट ने कहा था कि वाहनों पर काली फिल्म लगे होने से जनता की सुरक्षा को खतरा होता है। इससे अपराधियों को पुलिस से बचने में मदद मिलती है। ये महिलाओं पर यौन उत्पीड़न, डकैती, अपहरण जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देने में मददगार है। इसी वजह से काली फिल्मों या कम पारदर्शी शीशे पर सुप्रीम कोर्ट ने बैन लगाया था। इसके लिए 500 रुपए का जुर्माना लगाया जा सकता है। यदि बार-बार वाहन चालक नियम तोड़ता है तो उसका लाइसेंस सस्पेंड करके वाहन जब्त किया जा सकता है।

एक सवाल जिसमें पूछा गया की केरल हाईकोर्ट के फैसले के बाद क्या गाड़ी की खिड़कियों पर किसी भी तरह की फिल्म लगाना संभव होगा, इससे क्या बदल जाएगा? तो केरल हाईकोर्ट ने jwab देते हुए कहा की इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट के 2012 के फैसले में कोई बदलाव नहीं होगा। इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले में और ज्यादा क्लैरिटी आएगी। इसकी वजह यह है कि कई जगहों पर पुलिस गाड़ी के शीशे पर लगी किसी भी तरह की फिल्म को उतारने लगती थी।

कई जगहों पर नियम मुताबिक फिल्म लगे होने पर भी पुलिस चालान वसूलती थी। अब गाड़ी के शीशे पर चालक अपनी जरूरत के हिसाब से प्लास्टिक की परत या फिल्म लगवा पाएंगे। शोरूम से गाड़ी खरीदने के बाद भी लोग खिड़की के शीशे पर फिल्म लगवा पाएंगे। जीरो पारदर्शिता वाले शीशे या पूरी तरह से ब्लैक फिल्म लगाने पर अब भी पहले की तरह ही जुर्माना लगेगा। वहीं आपको यह भी बता दें की दुनिया के कई देशों में भारत की तरह 70% ट्रांसपेरेंट ब्लैक फिल्म लगाने की अनुमति है, लेकिन कुछ देशों में उनके राज्यों के अनुसार अलग-अलग कानून हैं।