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PTB Big City News Divya Jyoti Jagarati Sansthan organized a special program on Chhath Puja Jalandhar
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PTB Big City न्यूज़ जालंधर : दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान कि ओर से जालंधर संजय गाँधी नगर में छठ पूजा पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया / उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए परम पूजनीय श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्य स्वामी मनजोत जी ने कहा कि विविधताओं में एकता का प्रतीक है, हमारा भारतवर्ष अनेक पर्वों व त्यौहारो के लिए विश्व प्रसिद्ध है / यहाँ मनाए जाने वाले प्रत्येक पर्व के भीतर मानवजाति के लिए अनेक प्रेरणाएँ व संदेश निहित है /
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उन्होंने कहा कि हमारी सभी परंपराएँ रीति रिवाज सांस्कृतिक रूप से हमें अंतर्जगत की ओर उन्मुख कर हमारा मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं / छठ पर्व भी ऐसा ही एक पर्व है / यह अनुपम पर्व भारत के अनेक राज्यों- झारखंड, बिहार, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़, गुजरात, दिल्ली आदि में हर्षोल्लास से मनाया जाता है /
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इसके पश्चात नेपाल, मॉरिशस, गयैना, सूरीनाम आदि विदेशी प्रांतों में भी सुनाई देती है / समय के साथ छठ पर्व विश्व भर में प्रचलित होता जा रहा है / यह पर्व चार दिनों का होता है और इसमें भगवान सूर्य को अध्र्य देने का प्रचलन है / इसके पीछे छिपा सहस्य यह है कि नभ में उदित होता भास्कर नवजीवन, नवीन आशा, नए आरंभ का प्रतीक है /
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सूर्य के प्रथम प्रकरण का संदेश पाते ही प्रकृति भी पारङ्क्षगत हो उठती है / उदित होते सूर्य को अध्र्य देकर हम नवीन जीवन का नमन अर्पित करते है / परन्तु अस्त होता सूर्य भी संकेत करता है जीवन की गौरवशाली संध्या की ओर / गुरूदेव श्री आशुतोष महाराज जी कहते है कि मृत्यु अस्त होते के समान होनी चाहिए /
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संतों को देहावसान के समय उनके मुख मंडल पर एक अद्भुत लालिमा विराजमान होती है / वहीं साधारण मनुष्य का चेहरा मृत्यु के समय काला और निस्तेज पड़ जाता है / इसलिए हमारा अंतिम समय भी सूर्यास्त के समय का गौरवशाली संध्या जैसा हो / सुन्दर लालिमा से युक्त ढलता सूय्र मानव समाज को संदेश देता है कि उसने पूरे दिन प्रतिदिन के नियमों का पालन किया /
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वह अपने कर्तव्यों, दायित्वों का वहन करता हुआ जग को प्रदर्शित करता रहा / स्वंयभी प्रकाशित रहा समाज कल्याण हेतु भी सतत प्रयासशील रहा / यही है कि अंत समय वह गौरवमयी मुस्कान के साथ विदा हो पा रहा है / अत: हमें भी अपने जीवन में प्राकृतिक व ईश्वरीय नियमों का पालन करते हुए कर्तव्यों को पूर्ण करना है / श्रीहीन व ओजहीन होकर न आँखें मूँदें / हमारे मुख मुडल पर अंतिम समय में निस्तेज निराशा न छाए अपितु गौरवमयी संतोष की लालिमा से वह परिपूर्ण हो / इसके साथ ही यह पर्व सामूहिक चेतना की जागरण का भी परिचय देता है /
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