PTB Big न्यूज़ नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी अदालतों को एक महत्वपूर्ण नसीहत देते हुए कहा है कि वे ऐसे आदेश पारित न करें जो याचिका के दायरे से बाहर हों और याचिकाकर्ताओं को हैरान करने वाले हों। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने कहा कि अदालतें ऐसा फैसला न सुनाएं जिससे न्याय मांगने आए व्यक्ति को लगने लगे कि उसने कोर्ट आकर ही कोई गलती कर दी है। पीठ ने जोर देकर कहा कि लोग न्याय के लिए अदालत का रुख करते हैं और
. .अदालतों को भी याचिका के दायरे में रहकर ही फैसला सुनाना चाहिए। कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता को या तो राहत दी जा सकती है या फिर राहत देने से इनकार किया जा सकता है। लेकिन जब कोर्ट हैरान करने वाला फैसला सुनाते हैं, तो याचिकाकर्ता खुद को ठगा हुआ और अपमानित महसूस करता है। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी कोच्चि देवस्वम बोर्ड और चिन्मय मिशन एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट के बीच लाइसेंस फीस से जुड़े एक मामले में सुनवाई करते हुए की।
. .दरअसल, ट्रस्ट को 1974 में एक हॉल बनाने के लिए जमीन आवंटित की गई थी, जिसकी लाइसेंस फीस 1977 में मात्र 227 रुपये थी। साल 2014 में बोर्ड ने इसे बढ़ाकर 1.5 लाख रुपये सालाना कर दिया और 20 लाख रुपये का बकाया भी मांग लिया। जब ट्रस्ट राहत के लिए केरल हाईकोर्ट पहुंचा, तो हाईकोर्ट ने न केवल बढ़ी हुई फीस को सही ठहरा दिया, बल्कि भूमि आवंटन को लेकर एक विजिलेंस जांच का भी आदेश दे दिया।
. .ट्रस्ट की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के दोनों निर्देशों (फीस पुनर्निर्धारण और जांच के आदेश) को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट के दोनों निर्देश याचिका के दायरे से बाहर थे। बेंच ने कहा, “ऐसे फैसलों से तो याचिकाकर्ता खुद ही हैरान रह जाएगा। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उल्लंघन है।” सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कुछ अपवादों को छोड़कर सामान्य मामलों में अदालतों को याचिका के दायरे से बाहर नहीं जाना चाहिए।
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