PTB Political न्यूज़ चंडीगढ : बहुजन समाज पार्टी (BSP) की प्रमुख मायावती द्वारा पूरे देश में अकेले लोकसभा चुनाव 2024 लड़ने का ऐलान करने से पंजाब की राजनीति गर्मा गई है। वहीं, इससे साफ हो गया कि पंजाब में अब बसपा की शिरोमणि अकाली दल से भी राहें अलग होंगी। वहीं, सूत्रों की माने तो काफी समय से दोनों दलों के रिश्ते मधुर नहीं चल रहे थे। हालांकि यह ऐलान अकाली दल के लिए झटके से कम नहीं है। क्योंकि अभी तक पार्टी का किसी भी दल से समझाैता नहीं हुआ है। जबकि बसपा के साथ वह गठबंधन में थे, उससे उनकी राहे अलग हो गई है।
. .हालांकि अभी तक दोनों दलों के प्रदेश नेताओं का कोई बयान नहीं आया है। तीन कृषि कानूनों के चलते हुए संघर्ष के बाद भाजपा और शिअद की राहें गत विधानसभा चुनाव के समय अलग हो गई थी।इसके बाद अकाली दल और बसपा में गठबंधन हुआ था। दोनों दलों ने विधानसभा चुनाव मिलकर लड़ा था जिसमें अकाली दल को तीन और बसपा को एक सीट मिली। लेकिन काफी समय से दोनों के रिश्ते ठीक नहीं चल रहे थे। आरोप थे कि दोनों की मीटिंग तक नहीं हो रही है साथ ही अकाली दल द्वारा अपने प्रोग्रामों में बसपा नेताओं को शामिल तक नहीं किया जाता है।
. .2022 के चुनावों की बात करें तो सिर्फ 20 सीटों पर लड़ते हुए बसपा के नछत्तर पाल ने नवा शहर से जीत दर्ज की थी। वहीं दूसरी तरफ अकाली दल ने 97 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन उनके खाते में सिर्फ तीन सीटें ही आयी थी। इतना ही नहीं 2017 के मुकाबले इस साल बसपा का वोट शेयर भी बढ़ा था। 2017 में जहां 1.5 प्रतिशत वोट BSP को पड़े थे, वहीं 2022 में बसपा का वोट शेयर बढ़ कर 1.77% हो गया था। वहीं अकाली दल का वोट प्रतिशत लगातार कम हो रहा है।
. .बीते चुनावों की बात करें तो बसपा ने 1997 के बाद पहली बार 2022 के चुनावों में पंजाब में अपना खाता खोला था। 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन एक को छोड़कर बाकी कोई भी जमानत हीं बचा पाया था। 2012 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो बसपा ने 109 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे लेकिन सभी की जमानत जब्त हो गई थी। 2022 के चुनावों में दोनों दलों ने 25 साल बाद हाथ मिलाया था।
.इससे पहले दोनों पार्टियों ने 1996 में साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उस समय गठबंधन ने राज्य की 13 लोकसभा सीटों में से 11 पर जीत दर्ज की थी। बसपा के इस फैसले के बाद अकाली दल एक बार फिर अकेला हो गया है। 2021 में कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन के दौरान अकाली दल ने बीजेपी के साथ गठजोड़ तोड़ लिया था। तब भी अकाली दल अकेले पड़ गई थी। अंत में 2022 चुनावों में उन्हें बसपा का साथ मिला, जो अब मायावती की घोषणा के बाद फिर से राहे अलग होगी।
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